स्वर्ण श्रीयंत्र की रचना
हमारी पब्लिक लिमिटेड कंपनी के प्रबंध निर्देशक अपनी व्यवसायिक जिम्मेदारियों के साथ, अध्यात्म में भी गहन रूचि रखते हैं। उन्होंने कई प्रकार की साधनाएँ एवं ध्यान, प्रमुख अध्यात्मिक गुरूओं से सीखी। तत्पश्चात् उन्होंने श्रीविद्या साधना सीखने का फैसला किया। इस क्रम में उन्हें श्रीयंत्र एवं उसके चमत्कारी तथा दिव्य प्रभावों के बारे में पता चला। एक संबंधित अध्यात्मिक व्यक्तित्व ने उन्हें दो श्रीयंत्र अच्छे खासे मूल्य पर दिये। उन्होने बड़ी आस्था एवं विश्वास के साथ इसे खरीदा एवं अपने घर तथा ऑफिस में स्थापित किया।
श्रीयंत्र स्थापित करने के बाद उन्हे अपनी चेतना के स्तर पर तथा संसारिक जीवन में भी नकारात्मक प्रभाव का अनुभव हुआ। यह बेहद चौकाने वाली बात थी। उन्होंने अन्य स्त्रोतों से भी कुछ और श्रीयंत्र मंगवाए एवं उनका गहन अध्ययन किया। वे सारे श्रीयंत्र ब्रास अथवा कांसे से निर्मित थे तथा किसी की भी ज्यामिति सटीक नहीं थी। उन्होने पाया कि एक कम लागत का श्रीयंत्र 30-40 गुणा अधिक मूल्य में बेचा जा रहा है। उनका विश्वास टूट गया।
उक्त अध्यात्मिक व्यक्त्वि ने श्रीयंत्र हेतु भले ही और अधिक मूल्य लिया होता परन्तु लेने वाले को सकारात्मक परिणाम मिलना चाहिए। कुछ ना हो, तो कम से कम बिना नकारात्मक प्रभाव के एक अच्छे संग्रह की वस्तु हो। यह बेहद अनुचित था।
उन्होंने श्रीयंत्र से संबंधित सभी पौराणिक शास्त्रों एवं पुराणों का अध्ययन करने का फैसला किया। अध्ययन के बाद पाया गया कि उपरोक्त में से कोई भी श्रीयंत्र शास्त्रों में वर्णित श्रीयंत्र की ज्यामिति, धातु संरचना एवं रंग आदि के अनुरुप नही है। वस्तुतः ये श्रीयंत्र छोटे उत्पादकों द्वारा बनाये जाने वाले ब्रास व कांसे के अनेक उत्पादनों में से एक उत्पाद है।
इसलिए उन्होंने मुख्य उत्पाद के रूप में एक सटीक श्रीयंत्र बनाने का फैसला किया । इस पर शोध के लिए सक्षम व्यक्तियों की टीम बनायी गयी। सभी संबंधित पौराणिक शास्त्रों का अध्ययन किया गया, कई श्रीविद्या गुरूओं से परामर्श लिया गया, विभिन्न उत्पादन तकनीकों पर काम किया गया, पूँजी खर्च की एवं लगभग पाँच वर्षों के अथक परिश्रम से एक आदर्श श्रीयंत्र का निर्माण किया गया।
उन्होंने सबसे पहले सही श्रीयंत्र को अपने ऑफिस एवं घर पर स्थापित किया। उन्हें इसकी सकारात्मक ऊर्जा, अच्छा स्वास्थ्य, व्यापार में वृद्धि एवं अलग-अलग रुपों में इसके सकारात्मक प्रभावों का आनन्द मिलने लगा।
पौराणिक शास्त्र श्रीयंत्र के अनेक लाभों का वर्णन करते है। इन्हे वैज्ञानिक तौर पर सिद्ध करने के लिए, उन्होंने श्रीमती रीता महाज़न, बैंगलोर (आभा एवं ऊर्जा चक्र स्कैन की अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ) से संपर्क किया।
अनेक व्यक्तियों के आभा मंडल एवं ऊर्जा चक्रों का स्कैन श्रीयंत्र के साथ एवं बिना श्रीयंत्र के किया गया। सभी के ऊर्जा चक्रो एवं आभामण्डल में श्रीयंत्र के साथ अद्भुत सुधार पाया गया। इससे उनका विश्वास अपने द्वारा विकसित श्रीयंत्र पर अत्याधिक बढ़ गया, जिसे उन्होंने “स्वर्ण श्रीयंत्र“ का नाम दिया क्योंकि इस पर असली सोने की परत है। इस सटीक 3क् कला के डिज़ाइन पेटेंट लिये।
अंततः उन्होंने निर्णय लिया कि सभी के फायदे हेतु (व्यापार चलाने के लिये जरुरी- कम से कम लाभ पर) स्वर्ण श्रीयंत्र का वृहद प्रचार किया जावे।
इस तरह स्वर्ण श्रीयंत्र की रचना हुई।